नहीं रहे प्रसिद्ध भजन गायक Vinod Agrawal
मथुरा , भजन सम्राट और आध्यात्मिक गुरु के रूप में प्रसिद्ध Vinod Agrawal का मथुरा के नयति अस्पताल में सुबह चार बजे के आसपास निधन हो गया। वे 63 वर्ष के थे। अचानक स्वास्थ्य खराब होने पर उन्हें नयति अस्पताल में भर्ती कराया गया था। Vinod Agrawal के निधन से पूरे देश में शोक की लहर है। हर कोई अवाक है। वे मूल रूप से मुंबई के रहने वाले थे। विनोद अग्रवाल भगवान श्रीकृष्ण के ही भजन गाया करते थे। उनके भजन सुनने वाले कृष्णमय हो जाया करते थे। आगरा में कई साल से भजन संध्या में आ रहे थे।
11 नवम्बर को होनी थी भजन संध्या
उनका एक आवास पुष्पांजलि वैकुंठ कालोनी स्थित गोविंद की गली मथुरा में है। यहां 11 नवंबर से हित अम्बरीष की कथा प्रवचन का आयोजन कॉलोनी के मंदिर में होने जा रहा था। इसी दिन विनोद अग्रवाल की शाम 7 बजे से भजन संध्या का भी आयोजन था। जिसमें कई अन्य भजन गायक भी सहभागिता करने वाले थे। इस आयोजन को भव्यता प्रदान करने के लिए Vinod Agrawal तैयारियों में लगे हुए थे। हर दिन कालोनी के लोगों के साथ बैठक कर इस आयोजन को भव्यता देने के लिए मंथन कर रहे थे। तीन दिन पूर्व भी इस आयोजन के लिए उन्होंने लोगों से बात की।
रविवार को बिगड़ा था स्वास्थ्य
रविवार की सुबह Vinod Agrawal का स्वास्थ्य अचानक ही बिगड़ गया। उन्हें नयति अस्पताल में भर्ती कराया गया। सोमवार को दिल्ली से उनके पुत्र जतिन और भाई अशोक सहित उनके अन्य परिजन, दूर के रिश्तेदार भी मथुरा आ गए। चिकित्सकों ने भरपूर प्रयास किया, लेकिन बचाया नहीं जा सका। सोमवार को पूरे दिन उनके शुभचिंतकों का आना-जाना लगा रहा। मंगलवार की सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली। इसके साथ ही भजन के एक युग का सदा के लिए अवसान हो गया।
Vinod Agrawal का परिचय
Vinod Agrawal Ji का जन्म 6 जून 1955 को दिल्ली में हुआ था। उनके पिता स्वर्गीय श्री किशननंद अग्रवाल और मां स्वर्गीय श्रीमती रत्नदेवी अग्रवाल को भगवान कृष्ण और राधा पर अटूट विश्वास था। 1962 में 7 साल की उम्र में माता-पिता और भाई-बहनों के साथ वह दिल्ली से मुंबई चले गए। केवल 12 वर्ष की आयु में उन्होंने भजन गायन आरम्भ किया और हार्मोनियम बजाना सीख लिया। 11 दिसंबर, 1975 में 20 वर्ष की आयु में Vinod Agrawal Ji का विवाह कुसुम लता से हो गया। उनके दो बच्चे बेटा जतिन और बेटी शिखा की शादी हो चुकी है। Vinod Agrawal Ji के परिवार में सभी कृष्णा के अनुयायी थे, इसलिए बचपन से ही उन्हें भक्तिमय वातावरण मिला। उनके माता पिता ने भजन गाने के लिए प्रोत्साहित किया था। संतों और गुरुओं के सत्संग में उन्होंने अपनी इस कला को और निखारा।
1978 से हरिनाम संस्कार
सन 1978 से वह अपने बड़े भाई के कार्यालय में हर रविवार की सुबह हरि नाम संस्कार आयोजित कर रहे थे। 1979 में उन्होंने भटिंडा, पंजाब के गुरु स्वर्गीय मुकुंद हरि से दीक्षा ली। उनके गुरु की इच्छा थी कि Vinod Agrawal Ji सारी दुनिया में हरि नाम का प्रचार करें। अपने गुरु की इसी इच्छा को अपने जीवन का लक्ष्य बनाकर Vinod Agrawal Ji ने देश के अनेक राज्यों के विभिन्न शहरों में अनगिनत प्रस्तुतियां दी हैं। वह 1993 से बिना किसी शुल्क के लाइव कार्यक्रम भी आयोजित कर रहे थे।
1500 से अधिक लाइव कार्यक्रम
उन्होंने भारत में 1500 से अधिक लाइव कार्यक्रम और यू.के., इटली, सिंगापुर, स्विटजरलैंड, फ्रांस, कनाडा, जर्मनी, आयरलैंड, थाईलैंड, दुबई, नेपाल जैसे दुनिया के विभिन्न हिस्सों में कई सफल कार्यक्रम किए। 115 से भी अधिक ऑडियो कैसेट, सीडी और वीसीडी भारत में कई शीर्ष ऑडियो कंपनियों द्वारा जारी की गई हैं, जो पूरे विश्व में फैली हैं। उनके भजन रिकॉर्डिंग को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न टीवी चैनलों और स्थानीय केबल नेटवर्क के जरिए दिखाया जाता है। उनकी रिकॉर्डिंग बिना किसी रिटेक के सीधे रिकॉर्ड होती थी।
जिनसे महकता था वृन्दावन .. वो गुलाब अब गोलोक में खिल गया ! वो जिन्हें ढूंढेगी हमारी आंखे .. वो कृष्ण का दीवाना कृष्ण में ही मिल गया !!
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