जानिए ये पक्षियों के बारे मे जो दूसरे घोंसलों मे अपना अंडा देते है
पक्षियों की एक रहस्यमई दुनिया है जो बहुत ही निराली होती है। यहाँ पुर कुछ पक्षी ऐसे होते हैं जो अपने घोंसले का इस्तेमाल करने की बजाय दूसरे पक्षियों के घोंसलों का इस्तेमाल करते हैं और दूसरे पक्षियों के घोंसलों में जाकर अपने अंडे देते हैं। वे अंडे तो अवश्य देते हैं लेकिन उन अंडों को सेने से लेकर बच्चों को पालने तक का काम दूसरे पक्षी ही करते हैं।
एक ओर जहां ये पक्षी अपने मीठे कंठ स्वर से सबका मन पलभर में मोह लेते हैं, वहीं दूसरी ओर उनसे जुड़ी कुछ ऐसी बातें भी हैं, जिन्हें जान कर आप आश्चर्यचकित हो सकते हैं।
चाहे बात अपने बच्चों को पलवाने की हो या अंडे सेने की, कुछ पक्षी बड़ी चालाकी से दूसरे पक्षियों के घोंसलों का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे कुछ पक्षियों के विषय में विस्तार से जानने के लिए आगे पढ़ें।
दूसरे पक्षियों के घोंसलों में अपना अंडा देने वाले पक्षी
यदि वैज्ञानिकों की मानें तो ऐसे कुल 5 परिवार के पक्षी हैं जो चोरी छिपे अपने अंडों को दूसरों के घोंसले में रख देते हैं। कुल मिलाकर ऐसा काम 80 प्रजातियों के पक्षी करते हैं जिनमें अकेली कोयल (koyal in english is nightingale) की ही 40 प्रजातियां शामिल है।
ज्यादातर लोग कोयल को उसकी मीठी सी आवाज के लिए जानते हैं। जनवरी से लेकर जून के महीने तक इसकी आवाज बागों में बड़ी आसानी से सुनने को मिल जाती है। नर कोयल अपनी मीठी आवाज़ का प्रयोग मादा कोयल को रिझाने के लिए करते हैं। मादा कोयल इस आवाज को सुनकर नर कोयल की ओर आकर्षित होती है।
कोयल से जुड़ी एक दिलचस्प बात यह भी है कि न तो वह घोंसला बनाती है और ना ही अपने बच्चों को पालने की जिम्मेदारी लेती है। इसके लिए मादा कोयल या तो कौवे के घोंसले का इस्तेमाल करती है या फिर मैगपाई नामक एक पक्षी के घोंसले का भी इस्तेमाल करती है।
अण्डों का रंग एक ही तरह का होने की वजह से मादा कौवा अंडे की पहचान करने में अक्सर भूल कर बैठती है और उन्हें अपना समझ कर घोंसले में ही रहने देती है। और तो और अंडों से निकलने वाले कोयल के बच्चों का रंग भी कौवे के बच्चों की भांति ही होता है। इसी कारणवश कौवा अपने बच्चों तथा कोयल के बच्चों में भेद नहीं समझ पाता है। यह सिलसिला तब तक चलता रहता है जब तक की कोयल के बच्चे बोलना आरंभ नहीं करते हैं।
वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कोयल के डराने से मादा कौवा डर जाती है जिसके चलते वह अण्डों को सेती है। एक ऋतु में कोयल कम से कम 16 से लेकर 26 अंडे देने में सक्षम है। India के अलावा Europe में पाई जाने वाली मादा कोयल में भी यह प्रवृत्ति देखने को मिलती है। वह अक्सर शाम तक दूसरे पक्षियों के वापस लौटकर आने से पहले ही उनके घोंसले में अपने अंडों को रखकर आती है। कोयल के अलावा कुछ दूसरे प्रजातियों के पक्षियों में भी यह गुण पाया जाता है। इन प्रजातियों में हनी गाइड, पपीहा, गौरैया, और मेलोंथर्स जैसे पक्षियों के नाम भी शामिल हैं।
हनी गाइड एक ऐसी पक्षी है जो कठफोड़वा (Woodpecker) जैसे पक्षियों के घोंसलों में अंडे रख देती है। Germany में पाई जाने वाली एक विशेष प्रजाति की पक्षी ब्रूड वार्बलार अपने घोंसले में प्रजातियों के पक्षीयों, जैसे कोयल आदि, के अण्डे देखकर भयभीत होकर भाग जाती है।
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मेलोथर्स, जो कि उत्तर अमेरिका में पाई जाती है, उनमें भी यह प्रवृत्ति नज़र आती है। अगर Africa और South America की बात की जाए तो वहां पाए जाने वाली बत्तखों में भी यही गुण देखने को मिलता है। और तो और सीधी सी दिखने वाली गौरैया यानी sparrow भी दूसरे पक्षियों के घोंसले में कब्जा जमा लेती है। वह छोटी चिड़िया के साथ ऐसा करती है। यहां तक कि उस चिड़िया के अंडे को भी बाहर फेंक देती है। दिलचस्प बात यह है कि ऐसा करते समय वह अंडो को इस तरह से रखती है कि गिनती करते वक्त अंडों की संख्या न तो ज्यादा हो और न ही कम।
यदि दूसरे पक्षियों की बात करें तो जंगल में छुपता हुआ पाया जाने वाला पपीहा (Common Hawk) भी इस श्रेणी में शामिल है। वह चिलचिल वैब्लार नामक पक्षी के घोंसले में अंडे रख कर चली जाती है। इस प्रजाति के पक्षी को अक्सर दूसरे प्रजाति के पक्षियों के अंडे सेते हुए या उनके बच्चों का पालन पोषण करते हुए पाया जाता है।
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ऊपर बताई गई पक्षियों के अतिरिक्त ऐसे और भी पक्षि गण हैं जिनमें दूसरों के आशियाने में अपने अंडों को रखने का स्वभाव देखने को मिलता है। परंतु उपरोक्त पक्षियों के नाम, खासकर कोयल, उनमें सबसे पहले आता है।
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