History of Badaun District
वेदों की शिक्षा का केंद्र कहा जाने वाला उत्तर प्रदेश का Badaun District इतिहास के पन्नो में ख़ासा चर्चित है लेकिन बदायूँ के नामकरण को लेकर कई विद्वानों में मतभेद है. कई जगह Budaun के अस्तित्व को वैदिक कालों से बताया गया है कई लोगो के अनुसार यह नगर राजा बुद्ध के द्वारा बसाया गया जिसके कारण इसका शुरूआती नाम बुद्ध मऊ भी रहा. वेदों की शिक्षा का केंद्र होने के कारण यह जगह वेदा मऊ भी कहलायी. जिसका प्रमाण आज भी बदायूं में सूरजकुंड के रूप में स्थित है. यह कुंड प्राचीनकाल का वह गुरुकुल है जहाँ वेदों की शिक्षा दी जाती थी.
कई तथ्य यह भी हैं की वेदा मऊ का नाम बदलकर बदाऊ राजा महिपाल के द्वारा किया गया जिसने आज के समय में बदायूँ ( Badaun / Budaun ) का रूप ले लिया लेकिन कहीं भी इसका कोई प्रमाण मौजूद नहीं है. कुछ इतिहास कारों के अनुसार इस जगह का नाम एक समय पर वेदामूथ भी रहा.
समुद्र तल से 500 फिट की ऊँचाई पर स्थित Badaun पूरब से पश्चिम 115 किमी , उत्तर से दक्षिण 60 किमी है जिसकी प्रमुख नदी रामगंगा और सहायक नदी महावा , सोत , अरिल और भैंसोर है. लगभग सभी धर्मों से सजे Badaun में हिन्दू धर्म के लोगों का अनुपात अधिक है जहां तीन चौथाई से अधिक लोगो का व्यवसाय कृषि है.
Badaun की तहसीलें
Budaun की प्रमुख 6 तहसीलें निम्न प्रकार है,
- बदायूँ
- गुनौर
- दातागंज
- बिसौली
- बिल्सी
- सहसवान
किवदन्ती के अनुसार , निकट में मौजूद उंसावा दैत्यगुरु शुक्राचार्य की तपोभूमि भी रहा है जहां शुक्राचार्य ने भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु 80 हजार साल तप किया.
इतिहास के नजरिये से यदि Badaun को देखें तो राजा विक्रमजीत को मार कर जब सालवहान ने दिल्ली की गद्दी पर कब्जा किया तो Badaun का भार उसके पुत्र चंद्रपाल ने सम्भाला. जिस से जुड़े शिलालेख आज भी लखनऊ संग्राहलय में मौजूद है.
संवत 1190 में कन्नौज शासक के पुत्र जयदेव ने भी Badaun पर राज्य किया. जो बाद में जयपाल के नाम से जाना गया. जिसके बाद 1234 में पुत्र महिपाल द्वितीय ने शासन सम्भाला और आज भी उसके द्वारा बनवाया गया चन्द्र सरोवर ( पक्का ताल ) मौजूद है जो महिपाल ने अपनी पत्नी के नाम पर बनवाया था. महिपाल के बाद पुत्र धर्मपाल ने भी सिंघासन की जिम्मेदारी ली.
अकबर के शासनकाल में Budaun को दिल्ली के आधीन कर लिया गया और फौजी जागीर के रूप में कासिम अली खान को सौपा. 1571 ईसवी में Budaun का बड़ा हिस्सा भीषण में नष्ट हो गया.1801 ईसवी में Badaun अंग्रेजो के कब्जे में गया. जिसके बाद 1920 में जिला कांग्रेस कमिटी की नींव डाली गयी और महात्मा गांधी के आव्हान पर Budaun की जनता ने शांतिपूर्ण तरीके से आन्दोलन में अपनी हिस्सेदारी निभाई. इस प्रकार से Badaun प्राचीनकाल से ही उत्थानो पतन का केंद्र बिंदु रहा है.
Badaun की धरोहर
Budaun की ऐतिहासिक एवं ख़ासा चर्चित धरोहरों में नवाब इखलास खां का रौजा है, जिसे काफी हद तक ताजमहल की रूप रेखा दी गयी है जिसके कारण यह काला ताज भी कहलाता है. गुम्बद और चारो कोनो में मीनारनुमा मकबरे में वास्तविक 5 कब्रें है जो की इखलास खां और उनके सम्बन्धियों की बताई जाती है. हालाँकि इसके अन्दर जाने का रास्ता फिलहाल बंद किया जा चूका है.
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इसी के साथ भारत की शानदार मस्जिदों में से एक इल्तुतमिश ने यहाँ 1210 ईसवी में जामा मस्जिद की नींव रखी जो आज एशिया की सबसे पुरानी इबादतगाहों में शुमार है. जिसके चारो कोनो पर सुन्दर मीनारे और बुर्जियां शोभित है.
साथ ही साथ सागरताल , बड़े सरकार , छोटे सरकार , हजरत मीरा जी साहब , हजरत झंडा मिया साहब आदि जियारते प्रसिद्ध हैं जहां मुस्लिम ही नहीं बल्कि देश के कोने कोने से हिन्दू व अनेक धर्मो के लोग आकर अपनी हाजरी देते है. इतना ही नहीं Badaun में कई मकबरें , मदरसें स्थित है.
Badaun के धार्मिक स्थल
Budaun में धार्मिक अनुपात की बात करें तो यहाँ हिन्दुओ की संख्या अधिक है जिसके बाद मुस्लिम और फिर अन्य जन जातियां जैसे इसाई , सिक्ख , बौद्ध , जैन के लोग निवास करते है. जो होली दिवाली दशहरा ईद क्रिसमस रमजान उत्साह से मानाते है. इसी के साथ ककोडा ग्राम में स्थित गंगा नदी के तट पर हर साल मेले का आयोजन किया जाता है जहां प्रदेश के कोने कोने से लोग आ कर स्नान का आनंद लेते है.
साथ ही माना जाता है की Budaun में स्थित बड़े सरकार की दरगाह पर हाजरी लगाये बिना किसी भी व्यक्ति की हज यात्रा पूरी नहीं होती. यानी अजमेर शरीफ जाने वाले व्यक्ति को बड़े सरकार दरगाह पर आना बेहद जरूरी है, जो की हजरत सुलतान उल आरफीन ज्यारत के नाम से भी जानी जाती है.
Budaun में बौद्ध धर्म के उदय के साथ साथ सिख धर्म के गुरु गुरुतेग बहादुर और गुरु गोविन्द सिंह के आने का भी वर्णन मिलता है.
Badaun के कलमवीर
इतिहास में Budaun का नाम प्राचीन इमारतों या शासको के कारण ही नहीं बल्कि इस मिटटी में खेले कई पुत्रों के कारण भी स्वर्णअक्षरों में अंकित है, जिसमे किसी ने अपने शब्दों से दुनिया के दिलो को छुआ तो किसी का संगीत लोगों की जुबां पर छा गया.
आइये नजर डालते है ऐसे ही ख़ास नामो पर जिन्होंने इतिहास के पन्नो पर Budaun का नाम दर्ज कराया.
- शकील बदायूनी (शायर)
- फानी बदायूनी (शायर)
- अब्र अहसन गुनौरी (शायर)
- बेखुद बदायूनी (शायर)
- जौहर बदायूनी (शायर)
- दिलावर फिगार (शायर)
- उस्ताद फ़िदा हुसैन खां (संगीतकार)
- उस्ताद निसार हुसैन खां (संगीतकार)
- उस्ताद हफीज खां (गायक)
- गुलाम मुस्तफा (गायक)
संक्षिप्त में Badaun
- लगभग 145 किमी लम्बाई और 60 किमी चौडाई वाला Budaun सड़क मार्ग द्वारा पडोसी जनपद बरेली से 48किमी की दूरी पर है. जिसके साथ ही शाहजहाँपुर की दूरी 134किमी , फरुखाबाद 109किमी , एटा 90किमी , अलीगढ 131किमी , मुरादाबाद 113 किमी एवं रामपुर 100 किमी की दूरी पर स्थित है.
- Budaun के 15 ब्लॉक्स है. साथ ही बात करें Budaun के पिन कोड की तो यह 243601 है.
- Budaun की जनसंख्या लगभग 30 लाख 70 हजार दर्ज है जिसमे महिलाओं की संख्या 14 लाख 10 हजार तथा पुरुषो की संख्या 16 लाख दर्ज है.
- यदि Badaun की साक्षर जनसंख्या की बात करें तो यह आकड़ा 9 लाख 50 हजार का है.
- भारत की राजधानी दिल्ली से यदि Budaun की दूरी देखी जाए तो वह 235किमी है. जबकि प्रदेश की राजधानी से यह दूरी 311 किमी हो जाती है.
- Badaun की प्रसिद्ध मिठाई पेडा जगह जगह प्रसिद्ध है.
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पहली बार बदायु के बारे में इतना कुछ जानने को मिला . अच्छी जानकारी देने के लिए थैंक्स
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